सूरज अब उदित हुआ
सूरज अब उदित हुआ
दिख रहा प्रकाश पुंज सफलता का,
लगता है मिल गया पथ मुझे मंजिल का।
दिशाएँ सारी दिप्त हुई,प्रकाशमय गगन हुआ
गुंजायमान हुआ स्वर इतना मेरा,
लेता अंगड़ाई, हर मोड़ जैसे सीधा हुआ।
थमकर बैठना नही अब उड़ान तेज करना है,
नीवं इरादों की रखकर मुझे गगन को छूना है।
विराट जगत में हर किसी का स्थान अपना होता है,
कर्मठता की पृष्ठभूमि पर मेहनत के बीज बोता है।
ताप बाधा संघर्ष के ना विघ्न कर्म में डाल सके,
समय मूल्य की डाल खाद, हर स्वप्न मेरे फले-फूले।
हर हीनता निराशा का पत्थर निर्भयता की आग में भस्म हुआ,
गौरवान्वित फैला प्रकाश देखो सूरज अब उदित हुआ ।।
