अस्तित्व जल का
अस्तित्व जल का
संभलो, व्यर्थ जल ना जाया करो
संचित कर लो छोटे-छोटे अंजुलियों में
अस्तित्व ना जल का अवसान करो।
चंचला चाँदनी खेले जल के ऊपर
सूर्य किरणें जल में मिल स्वर्णिम हुई
ऐसे जल का तुम भी तो मान करो
संचित कर लो छोटे-छोटे अंजुलियों में
अस्तित्व ना जल का अवसान करो।
साथ जल हरित तृण बन,
खिल उठती धरा रानी
अंबर देख अक्स जल में अपना,
हो जाता अभिमानी
ऐसे जल का तुम थोड़ा तो मान धरो
संचित कर लो छोटे-छोटे अंजुलियों में
अस्तित्व ना जल का अवसान करो।
सरिता, जल-तलाबा,
संत हृदय गुण का रहता इनमें वास
जीवन प्रहरी यह हमारे,
करो ना इन कुटियों का नास
कुरुक्षेत्र बना रखे तपोवन,
इंसान कुछ तो शर्म करो
संचित कर लो छोटे-छोटे अंजुलियों में
अस्तित्व ना जल का अवसान करो ।।