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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

मै बेचारी आधुनिकता की मारी

मै बेचारी आधुनिकता की मारी

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सुरक्षित नहीं हूं आज मैं,

घर - घर में छिपें बैठे हैं रावण,

दामन कैसे बचाऊं मैं।


सीता, द्रौपदी आज भी हो रही 

कलंकित, कैसे लाज बचाऊं मैं।


लड़की होना अभिशाप है क्या,

भ्रूण हत्या को कैसे रोक पाऊं मैं।


आज कदम से कदम मिलाकर चल रही नारी,

 सफलता की कीमत पर, कैसे अस्मत बचाऊं मैं।


जन्मो उपरांत मां सहम जाती है

 कि बेटी को कैसे समाज में सम्मान दिलाऊं मैं।


मां ,बहन ,बेटी , पत्नी या बहू हो ,

 कैसे रिश्तों को ताक पर रख , कुकर्म कर जाते हैं।


नकाब पहन कर ये भेड़िये, हमारे आस पास मंडराते हैं 

कैसे पहचानूं इन नजरों को, ये काले साये, जिंदगी को नर्क बना जाते हैं।


जन्म से कोई कन्या, वेश्या नहीं होती, 

कुछ मनचले हवस का शिकार कर, कोठों पर बेच जाते हैं।


माताएं नहीं चाहती , बेटियों की मां बने,

दहशत के साये में कैसे, विकास की नीड़ गढ़े।


एसिड अटेक, वेश्यावृत्ति, भ्रूण हत्या, रेप,

लव जिहाद की शिकार हो रही आज बेटियां।


सही शिक्षा, सही मार्गदर्शन में हो 

बच्चों का लालन पालन, रोकने होंगे अपराध।


टी.वी, फिल्म आदि में ये वहशीपन न दिखा, 

भारतीय संस्कृति और सभ्यता दिखाएं दर्शन।

 

नारी है नारायण की जननी,

हृदय में देना होगा स्थान।


कन्या में है दुर्गा, काली, लक्ष्मी सरस्वती, शारदा, 

अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप, रखना होगा मान हमें।


आधुनिकता के नाम पर हो रही 

शीषण, बालिका करो सही पोषण।


विदेशी संस्कृति का करों बहिष्कार, 

मां भारती का कर रही, ये तिरस्कार।


नर, नारी को समझना होगा,

स्वच्छंदता, स्वतंत्रता भी हो मर्यादित 

तभी होगा हर युग में नमस्कार।



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