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Ashu Kapoor

Romance Fantasy

4  

Ashu Kapoor

Romance Fantasy

देखा एक ख्वाब

देखा एक ख्वाब

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रोज रात को

नींद ले जाती है

मुझको

ख्वाबों के शहर में 

गली- गली 

डगर- डगर 

बिखरे पड़े होते हैं:

ख्वाब सुनहरे- अनूठे 

देखती हूँ---- उल्ट- पलट

    शायद 

मिल जाये, 

 कोई ख्वाब ऐसा _____

जिसकी हो जाए ताबीर 

छूना चाहती हूँ---पर,

फिसल जाते हैं------

आँखों में बस कर 

क्षण भर

दूर निकल जाते हैं 

मिलता नहीं कोई ख्वाब ऐसा, 

जो हो सके 

सिर्फ और सिर्फ 

मेरा, 

लगा कर फेरा 

ख्वाब- नगर का 

लौट आती हूँ 

यथार्थ की दुनिया में 

सोचती सी-----

वो क्या था????

जो दिखा था केवल----- ख्वाब में 

पर हो ना सका मेरा

करती हूँ----- प्रतीक्षा 

अगली रात की----

कोशिश---- फिर से 

ख्वाबों की नगरी में जाने की -----

नए ख्वाब 

नई उम्मीदें 

संजोने की 

ख्वाबों के पूरा होने की 

फिर फिर 

नए ख्वाब देखने की 



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