प्रेम का दिया
प्रेम का दिया
आज भी तेरी तस्वीर मेरी डायरी के
पन्नो में छिप कर बैठी है कहीं
जब भी हवा का झोंका आता है वह फड़फड़ाते पन्नों से
बाहर आने को मचलने लगती है।
भूले नहीं भूलती है वो पहली मुलाकात,
जब जाते जाते पलट कर देखा था तुमने मुझे मुस्कुराते हुए
तुम्हारी आँखों के गहरे सागर में उसी वक्त डूब चुकी थी मैं
मेरा मन बैरी, मेरा हो कर भी नाम तुम्हारा रटने लगा था
सिमट कर रह गयी थी खुद में ही,
जब भीड़ में खो न जाऊं कहीं
यह सोच कर थामा था तुमने हाथ मेरा,
ज़िन्दगी भर थामे रखने का वादा करके।
तेरे साँसों की गर्माहट अब भी
महसूस कर पाती हूँ अपने चेहरे पर,
तेरा प्यार भरी नज़रों से देखना मुझे और
मेरा शर्मा कर तेरे सीने से लग जाना
अब भी याद आता है मेरी जुल्फों के साये में
तेरा दुनिया से बेखबर हो कर सो जाना।
याद आता है तेरे कंधे पर सर रख कर मेरा गुनगुनाना
मेरे चेहरे पर अपने हाथ रख कर तेरा मुझ पर प्यार जताना।
घर बार सखी सहेलियां सब मेरी बाधा हो गयीं,
तेरे प्रेम का अमृत पी कर मैं भी कृष्ण की राधा हो गई।
पर, जैसे कृष्ण की राधा कृष्ण की हो कर भी उस से दूर हो गई
मैं भी निर्दयी संसार के आगे कुछ ऐसे ही मज़बूर हो गई।
तेरे नाम का सिन्दूर तो मेरा न हो पाया,
पर वो सतरंगी पल सदा मेरे ही रहेंगे जो मैंने तेरे साथ है बिताया।
उस हर एक पल में मैंने एक पूरा जीवन जी लिया ,
सदैव जलता ही रहेगा में मन मंदिर में तेरे प्रेम का यह दिया।