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Raj K Kange

Tragedy Inspirational

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Raj K Kange

Tragedy Inspirational

उम्मीद

उम्मीद

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यह कैसा वक़्त आया है

हर ओर मातम छाया है।

रोते चिल्लाते बिलखते लोग ,

एक एक सांस के लिए तड़पते लोग।

कहीं चिताओं से धधकते शमशान घाट,

कहीं शवों के सौदागर लगा कर बैठे घात।

काल का विध्वंस देख कांप उठी है धरती

कहीं माँ के कदमो में पड़ा बेटे का शव,

कहीं बेटे के कंधों को तरसती बाप की अर्थी।

तिस पर भी न पिघलते कुछ पाषाण हृदय

मूँद कर बैठे है आंखे न सुनते किसी की अनुनय विनय

रोती हुयी जनता सोता हुआ सम्राट

बंद पड़ा हुआ न्याय के मंदिर का भी कपाट।

पर अब भी कुछ है जिसने बचा कर रखी है मानवता

धर्म से परे कई रूपों में आये है मदद को स्वयं विधाता।

जान हथेली पर रख , इस युद्ध में कूद पड़े है ,

महामारी में भी मदद को तैयार , डट कर खड़े है।

उम्मीद अभी भी बाकी है , यह तूफ़ान भी एक दिन थम जायेगा ,

काली अंधियारी रात बीत जाएगी , फिर से नया सूरज आकाश में जगमगाएगा।



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