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Raj K Kange

Abstract

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Raj K Kange

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मां

मां

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तुझ से अलग हूं, पर हूं तेरी ही छवि

यूंं तो बहुत है लोग दिल के करीब,

पर मां तुझ सा कोई नहीं।


खाना बनाए तो अन्नपूर्णा सी लगे,

पढ़ाने बैठे तो कठोर शिक्षक।

बिमार पड़ू तो तू ही मेरी डाक्टर,

परेशान रहूं तो मेरी  मार्ग दर्शक।


मेरे बचपन की पहली सखी,

मेरे तुतलाते शब्दों  की पहली अनुवादक।

मेरे पहले कदम का सहारा, मेरे अंतिम 

कदम तक का संंबल।


दुनिया भर की खुशी उस खुशी के आगे कुछ 

नहीं, जो बचपन में सुुुुबह आंखें खुलते ही,

तेरी सूरत देखकर मिलती थी।


मेरी हर गलती को हंस कर टालने वाली,

मां, इतना सब्र कैसे रहा तुझमें।

दुनिया तो बिना गलती के भी, 

सज़ा देने से नहीं चूूकती।


तेरे आंचल की छांव में जो सुरक्षा महसूस 

होती थी, वह लोहे की दीवारों में भी नहीं

मिल सकती।


तेरी आंखों में जो परवाह दिखाई देती है,

वह किसी में कहां ।

भगवान से लाख शिकायतें हैं मेरी, मगर 

शुक्रगुजार भी हूं उसकी कि उसने मुझे  

तुम जैसी मां दी, कभी चुका नहीं सकती 

क़र्ज़ तुम्हारा चाहे दे दूं अपनी जिंदगी।


ईश्वर से करू प्रार्थना , बस इतना ही वरदान 

चाहूं,

जब भी जन्म लूं इस धरती पर,

मां के रूप में तुझे ही पाऊं। 


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