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Raj K Kange

Others

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Raj K Kange

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आंगन की चिड़िया

आंगन की चिड़िया

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मां की छुटकी और पापा की परी

मेरे लिए, मेरी नकचढ़़ी

नटखट सी चुलबुली सी

हमारे आगंन की चिड़िया

जाने कब बड़ी हो गई

हमारी छोटी सी गुड़िया।


मुझ पर नज़र रखने वाली, मां की जासूस

काम से बचने के लिए बहाने बनाती थी क्या

खूब। 

खूब झगड़ती थी मुझसे पर,

प्यार भी बहुत करती थी

मुझे पापा की डांट से बचाने के लिए

खूब दिमाग लड़ाया करती थी।

 

अक्सर राखी पर ज्यादा पैसे पाने के लिए मुँह

फुलाया करती थी,

पर मनपसंद गिफ्ट पा कर गले से

लग जाया करती थी।

अक्सर कहा करता था मैं,

मां, इस बंंदरिया की शादी करके

जल्दी भगाओ इसे

नाक में दम करके रखती है

जल्दी विदा कराओ इसे।

 

लेकिन जब वो एक दिन सच में विदा हो कर

चली गयी तब खूब रोया था मैं 

रो रो कर सुजा ली थी आँखें

उस रात न सोया था मैं।


सुनसान घर के हर कोने में उसकी यादें थी

कानोंं में गूंजती उसकी कभी न खत्म होने

वाली बातें थी। 

मां कहती थी, उसको तो एक दिन जाना ही था

क्योंकि बेटियाँ पराया धन होती हैं,

मां बाप के घर की रौनक, किसी और के घर की

दुल्हन होती हैं।


अब भी आती है वो घर रक्षा बंधन पर,

 लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी हुयी,

कहती है, "भैय्या जल्दी वापस जाना है"

घर की दहलीज़ पर ही खड़ी हुयी।

अपने खिलौने तक भी संभाल कर न रख पाने

वाली, आज किसी का पूरा घर संभाल रही है

बेतहाशा खर्च करने वाली

आज अपने घर के खर्चों का हिसाब निकाल

 रही है।

 

जाने कब इतनी समझदार हो गयी

मेरी नासमझ बहना

दिल से देता हूँ तुझको दुआ तू जहां भी रहे

हमेशा खुश रहना। 


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