सुहागरात
सुहागरात
मुझसे इतना दूर क्यूँ हो तुम?
तुम्हें तो मेरे आगोश का हक़ है
पैरों में तुम्हारी पायल क्यूँ है?
इनपे तो मेरे पैरों का हक़ है
बाहर क्यों खड़ी हो तुम?
तुम्हें तो शबिस्तां में होने का हक़ है
चल क्यों रही हो तुम?
तुम्हें तो मेरी बाँहों का हक़ है
कुर्सी पर क्यूँ बैठ गई तुम?
तुम्हें तो पलंग पे सोने का हक़ है
गद्दे पर क्यूँ लेटी हो तुम?
तुम पर मेरी ज़ानू का हक़ है
कानों में तुम्हारे झुमके क्यों है?
इन पर तो मेरे लम्स का हक़ है
लम्स-स्पर्श
ज़ुल्फ़े क्यों है गालों पर तुम्हारे?
इनपर तो मेरे होठों का हक़ है
आँचल क्यों है कमर पर तुम्हारी?
इसपे तो मुझे हाथ फेरने का हक़ है
गालों पे तुम्हारे लटें क्यूँ है?
इन्हें चूमने का तो हक़ मुझे है
क्यूँ बैठे बैठे मुझे देख रही हो?
तुम्हे पलंग पर लेटने का हक़ है
हाथों में तुम्हारे चूड़ियाँ क्यों?
इनपे तो मेरी बाँहों के घेरे का हक़ है
लब़ों पे तुम्हारे ये लाली क्यूँ है?
इनपे तो मेरे लब़ों का हक़ है
मुखड़े पे तुम्हारे पसीना क्यूँ है?
इसपे तो मेरी प्यास का हक़ है
पीठ पे तुम्हारी कपड़ें क्यूँ है?
इनपे तो मेरी थप्पी का हक़ है
अभी क्यों सो रही हो तुम?
अभी तो मज़ा करने का हक़ है
अभी क्यूँ करवटें ले रही तुम?
अभी तो मुझे पागल होने का हक़ है
'साहिल' क्यूँ जाए औरों के पीछे?
उसपर तो ज़ालिम तेरा हक़ है
अभी ये लम्हात खतम क्यूँ करे?
अभी तो मुझे कुछ और भी हक़ है
हमारे जिस्म पर पैरहन क्यूँ है?
आज की शब़ तो उरिया होने का हक़ है
पैरहन-कपड़े
उरियां-नग्न
साँसें तुम्हारी धीमी क्यूँ है?
अब तो इन्हें तेज़ होने का हक़ है...