ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुहब्ब्त आपसे क्या हुई, मुहब्ब्त ज़िंदगी से हो गई
कल तलक़ नाराज़ था उससे, आज प्यारी हो गई
अदाएं आपकी करती घायल, ज़ख्मों में शुमारी हो गई
मय का सागर आप, दीदार से ख़ुमारी हो गई
जिस्म आपका इत्ता नूर रखता, बैचेनी हमको हो गई
खद्दो-ख़ाल मुलायम इतने, गद्दो को शर्मिंदगी हो गई
सादगी आपकी इत्ती सुंदर, चाँदनी को मात दे गई
हरहफ़्त आपने क्या खनकाए, बेक़रारी हमे हो गई
विसाल आपसे क्या हुई, रब़ की इबादत हो गई
मंदिर-मस्ज़िद जाना बंद, आप ही बुत हो गई।