तन्हाई में
तन्हाई में
आलम पूछो ना, मेरा तुम तन्हाई में
मर मर कर जी रहा हूँ तन्हाई में
महफ़िलों - बाज़ारों में भी तू नहीं दिखती
भीड़ में भी लगता, हूँ तन्हाई में
शबिस्तां में भी अकेला, साथी केवल तकिया
नींदें भी, उड़ी मेरी तो तन्हाई में
चादर तकिया बिस्तर गद्दे, सारे है उदास
काबिज़ करो आधा बिस्तर, सिलवटें डालो तन्हाई में
ख्वाब़ो ख़यालों से भी मेरे तुम गायब़
आओ मिलकर बिखेरे शबिस्तां, तन्हाई में
जी नही लगता अब मेरा घर में
जाने कब तक घुटकर जीऊँगा मैं तन्हाई में
ज़िंदगी कैसे गुज़र रही कुछ ना पूछो
तिल तिल कर मर रहा तन्हाई में।
शबिस्तां - बेड रूम