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Sahil Hindustaani

Abstract Romance Fantasy

4  

Sahil Hindustaani

Abstract Romance Fantasy

अश'आर

अश'आर

2 mins
299


कब्ज़ा कर बैठे है वो मेरे दिल पर

और कोई! अब ये सोचना भी हराम है


उस ज़ालिम में बुत देख लिया है मैंने

रहाई को हासिल कर लिया है अब मैंने

रहाई - मुक्ति


न जाने आज चाँद क्यूँ न निकला

लगता है मेरा यार मुझसे ख़फा है


भूलकर भी भूल से अब याख़ुदा नही कहता

उसकी गद्दी पर मेरा यार जो काबिज़ है


कभी करती है मदहोश कभी लगती है पाक़

उसकी हर अदा मुझे कर देती है खाक़


अमावस की रातें बढ़ने वाली है अब

मेरा यार जो मुझसे जुदा हो रहा


न जाने क्यूँ ये सूरज डूबता है हर रोज़

वक़्ते-विसाले-यार मुझसे छीनता हर रोज़


चाँद की चाँदनी ये फ़ीकी पड़ रही है

मेरा यार जो मुझसे निहां हो रहा है

निहां होना - छुपना


मेरी हर तमन्ना व़ ज़ालिम मुकम्मल करता है

यूँ ही नहीं मैंने उसे बुत बनाया है


दिन-ब-दिन नूर बड़ रहा उस ज़ालिम का

शायद सोने के पानी से नहाने लगा है


एसे मेरा यार क़रीब आ रहा आहिस्ता आहिस्ता

जैसे दूज का चाँद बढ़ता है आहिस्ता आहिस्ता


औरों के लिए ख़ुदा अल्लाह और राम है

मेरे लिए तो मेरा यार मेरा भगवान् है


जी करता है मुँह चूम लूँ तेरा

जब कभी गुस्से से तू लाल होता है


इक स्याह कोरा पन्ना है हयात मेरी

आकर इसमें तुम रंगीन तहरीर भर दो

तहरीर - लिखावट


हुक्मरां बन वो मेरे दिल पर काबिज़ है

अब उनका हुक्म मानना मेरे लिए लाज़मी है


जी करता है ये काफ़िर मौलाना बन जाए

जबसे हरम-ए-दिल में तू बुत बना ज़ालिम


तेरी हर अदा है क़ातिल ज़ालिम

फ़िर भी ज़िंदा हूँ जाने कैसे


नही जानता था मैं, ख़ुदा क्या होता है

आपको देखा तो, उसका रंग-रूप जान गया


सादग़ी से भरा जिस्म तेरा लगता है श़रर

डर है तेरे आगोश़ में जल न जाऊँ


सीम-ज़र-आफ़ताब-माहताब-हरहफ़्त

सारे अब उदास

तेरे जिस्म का नूर इतना कुशादा है


क़ातिल अदाएं लेकर ना घूमा करो शहर में

कितना क़त्ले-आम कराती हो तुम क्या जानो


शब की क़ुरब़तों में हमे पता चला कि

फूलों से भी नाज़ुक है तेरा जिस्म ज़ालिम


लुग-उल्फ़त में ग़र तेरा नाम होता ना

तो मा'ने-हर्फ़ वर्क कम पड़ते बताते हुए।


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