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Sahil Hindustaani

Romance

4  

Sahil Hindustaani

Romance

कहता हूँ

कहता हूँ

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करवटें बदलता रहता हूँ बस तुझे सोचता रहता हूँ

ग़ज़लें लिखता रहता हूँ और तकिए को सुनाता हूँ


तेरे ही ख़्वाब तेरे ही ख़यालों में खोया रहता हूँ

तन्हा जब मैं होता हूँ तुझसे बातें करता हूँ


रात-दिन मैं बस तुझको याद करता हूँ

रजाई में भी मैं बस तुझे सोचता रहता हूँ


सदाक़त की मूरत है तू बस यही सोचता हूँ

इबादत के समय तुझको याद करता हूँ


हर जगह मुझे दिखती तू सच मैं ये कहता हूँ

दरिया तुझको और साहिल खुद को मानता हूँ!


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