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Ishika Singh

Romance

4  

Ishika Singh

Romance

वो है कोई शख्स...

वो है कोई शख्स...

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मामूली सा दिन था, ना ज़्यादा खुशी थी ना ज़्यादा गम था, 

उस घड़ी कुछ तो बदला, जो किस्मत में पहले से था लिखा।

नहीं समझ पाया ये दिल, कब हाथों कि लकीरों में वो शामिल हो गया, 

रह गया था जो एक अधूरा सा ख्वाब वो पूरा होते दिख गया।

ज़ख़्म थे, जो छुपाये मुसकराहटों के पीछे, जाने कैसे भर दिये उसने, 

हाँ, ये वही है, मजबूर किया लिखने को, उसके बारे में जिसने।


बहा ले चला वो मुझे अपने साथ, 

तुम फूलों कि खुशबु, मैं हवा सा मनचला, और थाम लिया मेरा हाथ।

जोड़ दिया सभी बिखरे हिस्से मेरे ऐसे, 

नन्हे पौधे को बांध देती है खाद जैसे।

उसकी आँखों में अनोखी सी बात है, एक उम्मीद है, खुशियों की लहर है।

मुस्कुरा के कह दे जो वो, तो मुश्किल रास्ते भी आसान है।


हँस दे जो वो, तो तारों कि चमक फीकी पड़ जाए

कहते हैं दूर तो चाँद और सूरज भी हैं,

लेकिन रिश्ता इतना गहरा और

फिर भी इतना खास की आँख भर आये।

रुक सा गया था, सफ़र जो एक जिंदगी का,

दिल रोक ना पाया, कह के थामा जब हाथ, साथ जी ले इसे, आ।

उस अंधेरे कमरे में जलती एक लौ है वो, 

अंजान सड़कों पे मिल जाए कोई, हमसफर है वो।


रुलाता है, 

मगर उसी बात पे हँसानाभी जानता है।

महफूज हूँ मैं, उसकी बाहों में, 

जाने कहाँ से, मेरे गिरने के बाद उठाने के तरीके ढूंढ के लाता है यह।

उसका हर शब्द वो स्याही का अंश है, 

मेरे जिंदगी के खाली पन्नों पे लिख दी गयी जो सुनहरी बात है.

गलत समय, सही इंसान जैसी बातें मानता था ये दिल कभी, 

गलत समय को सही बना दीया जिसने उस पे दिल आये कैसे नहीं? 

है वो कोई जिसके वजह से आँसू गिनना बंद कर दीया, 

दिल और जज़्बातों को बंद रक्खा था जिस कमरे में,

उसका भी दरवाज़ा खोल लिया.

सही कहते हैं वो लोग, 

बना है जो आपके लिए, सफ़र में मिल जायेगा कहीं, 

नामुमकिन सा लगेगा जब,

खड़ा मिलेगा वो एक खूबसूरत सा शख्स वहीं।


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