क्या करोगे अफसोस करके तब?
क्या करोगे अफसोस करके तब?
पन्ने पलटे आज जिंदगी की किताब के,
सोचा जीके देखते हैं उन्हें शुरुआत से,
बंद हो सी गई थी जो मुस्कुराहटें संदूक में,खिली ऐसे,
बारिश के स्पर्श से खिल उठी हो धरती जैसे!ले चला समय मुझे उस दौर में,
जहां इंसान लादे चलता था नहीं बोझ कंधे पे
रिश्तों की बुनियादें थीं मज़बूत,
रिश्ता था मानों चांद सूरज जैसा अटूट
समेट ली वो सारी खुशी आंखें बंद कर,
खुश हुआ मन उस समय को सोचकर!
लेकिन अगले ही पल भर आया दिल और लगा सोचने ,
बदले हैं कितने नज़ारे, फर्क़ आ गया कितना सोच में!
यादों के उस सफर में रह गई थीं कुछ बातें अनकही,
लुप्त हो गए उस अध्याय के पन्ने हवा में और ऐसी ही रक्खी रह गई सियाही!
बीत चुके थे वो दिन, दिल से हुआ करते थे खुश जब,
झूट कह भी दे इंसान, मान जाया करते हैं लोग अब
रेत में पानी की बूंद सा रह गया हो मानो विश्वास एक दूसरे पर,
है नहीं लोगों के पास समय, ठहर के बात कर लेने का थोड़ा सा हंसकर!
बिखरा हुआ है इंसान, रेत के टीलों जैसा,
तेज़ पानी के बहाव सा बह ले जाएगा उसे मानसिक तनाव सोचा ना था ऐसा
वापस आएगा नहीं वो गुज़रा हुआ समय,
दिखाओ थोड़ी इंसानियत, लाओ थोड़ा सा विनय
बातें करो अपने लोगों के साथ,
छोड़ो उस घमंड को पकड़े बैठे हो जिसका हाथ
मिट्टी से बना यह शरीर मिट्टी में मिल जाना है,
तब अफसोस करने से क्या फ़ायदा है ?
तब अफसोस करने से क्या फ़ायदा है ?