उलझे सवालों की वो डोर .......
उलझे सवालों की वो डोर .......
उठते हैं कुछ सवाल ज़ेहन में,
ढूँढने निकलेंगे, तो क्या जवाब मिल जायेंगे आसानी से?
क्यों है ऐसा की लोग खुश नहीं?
मुस्कुराहट तो है चेहरे पे, पर दुख बांटने के लिए कोई साथी नहीं?
क्या होता अगर, दिल के हिस्से कर कोई उसको रौंदता नहीं?
हमारी हिस्से की खुशियाँ फिर भी क्या मिल जाती कहीं?
बिखरे तो हो तुम अंदर से,
तो क्यों लगे हो अपने आपको सिर्फ बाहर से सँवारने में?
एक झूठ से कितने वक़्त तक रिश्ते निभाओगे?
कर्मों का हिसाब होगा जब, तुम्हें रचने वाले को जवाब दे पाओगे?
भगवान कृष्ण कह गए -"कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है,
जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता "
पर आज कल इन बातों पे ध्यान कौन है देता?
मैं और तुम है तो एक जैसे, रंग, रूप अलग है भी तो क्या?
महंगी चीज़ों से ही सिर्फ स्नेह, रह गया क्या यही अर्थ इंसानियत का?
चाँद और सूरज की अधूरी कहानी है जैसे,
जिंदगी के वो खाली पन्ने पूरे होंगे कैसे?
मुखौटों का इस्तेमाल तो मैंने अभिनय में देखा था,
किसी के सामने खुश, पीछे बददुआ है देते.
हमने सीखा यह था क्या?
सुना है कितनी दफ़ा स्त्रियों की खूबसूरती का राग उन मधुर गीतों में?
वादा किया है, अपने जीवन में कितने पुरुषों को,
अश्रु देने लगे तो रख सकते हैं वो सर हमारे कंधे पे?
कुछ वक़्त की खुशी के लिए,
स्त्री को वस्तु समझ मजबूर किया क्यों जाता है?
है कितनी शक्ति उस स्त्री में, इरादा तुम्हारा,
वो देखने और इतिहास दोहराने का है?
छोड़ा है कब, परछाइयों ने साथ?
तो क्यों छोड़ देता है, बीच सफ़र में कोई हमारा हाथ?
बशर्ते प्यार की वो शर्त सामने रखते कैसे हैं?
भूल तो नहीं जाते, की वो खुद ही शर्तों का बस्ता लादे चलते हैं.
वही, बेशर्त प्यार की चाह खुद में एक शर्त है,
एक दूसरे को ये बोलना पड़े, प्यार की क्या इतनी गरज़ है?
विश्वास क्यों है दिलाते लोग?
तोड़ के मिलता है किस प्रकार का भोग?
कैसी होती होगी वो दुनिया, जहाँ हम बंदिशों से आज़ाद होते होंगे?
खो देने से एक और बेटी, फिर वो लाचार माँ बाप कभी ना रोयेंगे
कौन खींचता है वो रेखा मेरे और तुम्हारे बीच?
है ना कोई ऊपर, ना किसी का धर्म है नीच
क्या होता अगर, यह दुनिया ओढ़े बैठती नहीं बनावटीपन की वो चादर?
होता कुछ ऐसा मंज़र, सोच के करता मनुष्य ऐसे कर्म,
नामुमकिन होता ना करना उसका आदर.
हाथों की लकीरें बदलती हैं क्या?
अंजान रास्ते भी मंज़िल तक ले जाते हैं क्या?
कहता है कौन की समुद्र का चाँद के आलिंगन का तरीका पुराना है?
बस आज के तरीकों से कुछ अलग सा लगता है क्योंकि
बिना जताये इंसान रिश्ते निभाता कहा है?
खोये और बिखरे शब्दों को वापस पिरोना आसान है क्या?
अप्रत्याशित जगहों से उन एहसासों को फिर से जगाना आसान है क्या?
जूझता है दिल और दिमाग, रोज़ एक जंग में, ना जाने और कितने है सवाल,
नम हो जाती हैं आँखें, थक जाती है मन, पर दिल लेता है उसको संभाल
क्योंकि,
आँधियों में भी दीपक जलते देखा है,
उम्मीद नहीं थी जहाँ वहाँ भी चमत्कार होते देखा है,
करोगे इतना गुरूर जो, ऊँची, भारी चट्टानों को भी बिखरते,
टूटते, ज़मीन पे आते देखा है.
इंसान तो बस एक पानी की धारा है,
जहाँ रास्ते ले चले, वही उसका सहारा है.
मोम के जैसा यह दिल, पिघल जाता है, प्यार के हरारत से,
जिंदगी मिली है जो तुम्हें,
है एक ही तुम्हारे पास, जी लो इसे हँसी खुशी से
जी लो इसे हँसी खुशी से।