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Ishika Singh

Inspirational Others

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Ishika Singh

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काश हम आज़ाद हो पाते

काश हम आज़ाद हो पाते

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बादलों की उस नीली कवच सी,

काश हम असीम राह चल पाते।

नदियों की उस तेज़ गति की तरह,

बेफिक्र भाग पाते, 

काश हम आज़ाद हो पाते।


खुद से चल रही है एक ऐसी लड़ाई,

ना चाहते हुए भी हमने खुद की अहमियत मिटाई।

काश हम अपने लड़खड़ाते कदमों को सुदृढ़ बना पाते, 

काश हम आज़ाद हो पाते।


राख के धुएँ सी लुप्त हो चुकी है हमारी रूह हमसे,

अब तो हार मान जाते हैं हम खुद से।

काश हमारे अंदर उठते वो तूफ़ान शांत हो पाते ,

काश हम आज़ाद हो पाते।


लहरों की तरह साहिल पे पहुंच जाने की बस वो एक तलाश है,

ठहर जाने कि और वक्त को महसूस करने की चाह है।

लोगों की आसक्ति से काश हम बाहर आ पाते,

काश हम आज़ाद हो पाते।


बंधे हैं हम उन मुस्कराहटों में जिनके पीछे का दुख नहीं दिखता,

उलझे हैं उन सवालों में जिनके पीछे का जवाब नहीं मिलता।

डूबना चाहते भी हैं, वहाँ जहां तैर नहीं पाते,

काश हम आज़ाद हो पाते।


लादे चलते हैं हम वो हिस्सा जिंदगी का

जिसने हमें बदला है,

त्याग दो वो बेड़ियाँ, तुम्हारा क्या जाता है?

पूछते हैं सब यही सवाल,

कैसे करना है देता नहीं कोई इसका जवाब।

काश प्रारब्ध से अपनी खुशी छीन पाते, 

काश हम आज़ाद हो पाते।


टूटेंगे यह बंधन एक दिन,

रातों को उन सभी दर्द के बिन।

दिखेगी वो खूबसूरत सुबह,

जिसे देख लगे कि बस थम जाए यह लम्हा।

बांहों में लेंगे हमें सितारे रातों को,

सजेगी जिंदगी, जैसे सजाते हैं लोग नव दुल्हन को।

दुआ मांगेंगी नहीं फिर वो रातें,

काश हम आज़ाद हो पाते

काश हम आज़ाद हो पाते



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