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Satish Chandra Pandey

Romance

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Satish Chandra Pandey

Romance

खूब रंगों को उड़ेलूँ

खूब रंगों को उड़ेलूँ

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ऐसी सुना दे पंक्तियाँ

जो मधुर रस सींच दें,

रंग के त्यौहार में

रंगीनियों को सींच दें।

अश्क सारे सूख जायें

होंठ गीले से रहें,

नैन में काजल लगा हो

खूब नीले से लगें।

गाल पंखुड़ियां गुलाबी

लाल हो अधरों में रंग

देख कर के लालिमा भी

आज रह जायेगी दंग।

चाँद चमका हो मस्तक में

और दस्तक हो दिलों में

भर तेरे रंगों को खुद में

आज फूलों सा खिलूँ मैं।

प्रेम पिचकारी भरी हो

मारकर बंदूक सी

फिर उठे थोड़ी सी सिहरन

ठंड सी कुछ हूक सी।

खिलखिला भीतर व बाहर

खुशियां मनाऊं इन पलों की

खूब रंगों को उड़ेलूँ

होली मनाऊं इन पलों की।

ऐसी सुना दे पंक्तियाँ

जो मधुर रस सींच दें,

रंग के त्यौहार में

रंगीनियों को सींच दें।


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