दो प्रेमी
दो प्रेमी
एक मोहब्बत करके जानम दो दिल बैठे उलझन में..
एक बड़े कमरे में रोता एक मटीले आँगन में...
एक की दुविधा ये है कि वो कितनों पे ऐतबार करे ..
दूजा इसी सोच में पागल कैसे उसके साथ रहे...
अहंकार और तिरस्कार के बीच पिसे हैं दो प्रेमी..
रोज़ नए कुछ ख़्वाब सजाते रोज़ बिखरते दो प्रेमी...
एक विरह में आहें भरता एक बँधा है बंधन में,
एक मोहब्बत करके जानम दो दिल बैठे उलझन में...
एक प्रेम को बंधन समझे,एक प्रेम की पूजा करता...
वो दुनिया की बातें माने ये दुनिया को नश्वर कहता...
फिर भी कोई मधुर डोर से दोनों मन हैं बँधे हुए..
जाने किस उद्देश्य-पूर्ति को एक-दूजे से जुड़े हुए...
उसकी प्यास अधर पे अटकी, इसकी छलके नैनन में..
एक मोहब्बत करके जानम दो दिल बैठे उलझन में...