या रब सी सूरत वाली सुनो
या रब सी सूरत वाली सुनो
या रब सी सूरत वाली सुनो,
शायद तुमने ठीक कहा था.....
ये जहां और इश्क़ की रिवायत ये रिवाज, इन सबसे बड़ा बेफिक्र था....
मेरी आंखों में मुहब्बत नहीं थी,
वो खूबसूरत चिनार और देवदार भी ना थे जो आशिकों और माशुकों को रिझाते हैं,
मेरी आंखों में विंध्य के उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के सिवा शायद कुछ ना था....
शायद तुम्हारी हसरत गिटार के जेज़ की धुन पर थिरकने की थी,
मगर मैं अपनी वायलिन पर शिवरंजनी और मल्हार बजाता रहा.....
या रब सी सूरत वाली,
तुम खाबों में ही रहती तो सब सही रहता,
तुम एक धुंध से लबरेज़ साया ही रहती तो सही रहता,
सुनो......
तुम फिर से कभी दो आंखें, गुनगुनाती आवाज़ और किसी रब की सूरत इख्तियार मत करना....
जीना सीख रहा हूं कुछ स्पानी पाब्लो से
तो कुछ मर्खेज से....
रब सी सूरत वाली,
ये जो विंध्य के पर्णपाती बियाबान जंगल हैं,
ये हर साल बारिश का इंतजार करते हैं....
एक दफा यहां आना जरूर, और
इन्हें पहली बारिश के बाद देखना,
मेरी आंखें अब इनकी सरसब्ज दास्तां
तुम्हे सुना ना सकेगी,
मेरी आवाज़ अब शायद तुम तक पहुंच ना सकेगी...!!
वो डायरी खोलकर देख लेना जिसमें तुमने
कदंब की पत्ती रखी थी....
या रब सी सूरत वाली।।