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Pushpraj Singh Rajawat

Romance

4  

Pushpraj Singh Rajawat

Romance

पाषाण हृदय

पाषाण हृदय

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लंबे रास्ते से गुजरकर किसी पहाड़ी में छुपे छोटे से अंजान मंदिर के

 किसी लोक देवता के सामने तुम मुझे वर लेती और मेरी पत्नी बन जाती।

 देवता का नाम भी पता नहीं था सो रस्म भी नही जानता, 

केवल प्रेम और भरोसे की नींव पर रिश्ता रख कर हम दुनियां जीतने निकल पड़ते।

 मगर तुम भूल जाना इसे किसी दिवा स्वप्न की तरह।

अब प्रेम पक रहा है, पत्थर पैदा हो रहा है हृदय में। कुछ दिन की बात है बस। 

पर तुम प्रेम के इस बीज को किसी सजीले राजकुंवर में प्रत्यारोपित कर देना, और सींचना।

मैं खाबों में तुम्हारे प्रेम के वृक्ष को बढ़ता देखा करूंगा.... 

अपने पाषाण हृदय से तुम्हारे प्रेम की रक्षा करता मिलूंगा।


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