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SUHAS GHOKE

Abstract Romance

4.5  

SUHAS GHOKE

Abstract Romance

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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402


हम बेइंतहा प्यार लुटाए कैसे 

अपने किस्मत के अंधेरों को मिटाए कैसे 


वो आये और हाथ थामे उस लम्हे का इंतज़ार है 

तब तक इस नादान दिल को तसल्ली दिलाए कैसे 


 अरसों बाद हिम्मत कर फोन लगा दिया 

 मेरी आवाज़ उसकी आवाज़ से मिलाए कैसे 


शकल तो ज़ेहन मैं है ही 

हूबहू पन्नों पर तस्वीर बनाए कैसे 


वक़्त ने लूट ली लोगों की तमन्नाएं भी 

अब अपने होंठों पर तबस्सुम सजाएं कैसे 


वो शख्स भी मुस्कुरा रहा है 

मगर अपने रूठ जाए तो उन्हें मनाए कैसे 


कोई पूछे आपका हाल 

अपना हाल - ए - दिल उन्हें बतलाए कैसे 


तुम्हारे साथ ये मौसम फरिश्ते जैसे है 

अब तुम्हारे बाद ये मौसम संग बिताए कैसे 


मुश्किलें हमने सवारी है बहुत यूँ तो पर 

राह के पत्थर को हम फूल बनाए कैसे 


तलाश जारी रखूँ तो कोई मिल जायेगा 

अरे मोहब्बत जुर्म नहीं मोहब्बत छुपाए कैसे 

 

ख़ामोश है ज़ुबां , गुम है अल्फ़ाज़ 

अपने जज़्बात को ग़ज़लों में सजाए कैसे 


 


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