ग़ज़ल
ग़ज़ल
हम बेइंतहा प्यार लुटाए कैसे
अपने किस्मत के अंधेरों को मिटाए कैसे
वो आये और हाथ थामे उस लम्हे का इंतज़ार है
तब तक इस नादान दिल को तसल्ली दिलाए कैसे
अरसों बाद हिम्मत कर फोन लगा दिया
मेरी आवाज़ उसकी आवाज़ से मिलाए कैसे
शकल तो ज़ेहन मैं है ही
हूबहू पन्नों पर तस्वीर बनाए कैसे
वक़्त ने लूट ली लोगों की तमन्नाएं भी
अब अपने होंठों पर तबस्सुम सजाएं कैसे
वो शख्स भी मुस्कुरा रहा है
मगर अपने रूठ जाए तो उन्हें मनाए कैसे
कोई पूछे आपका हाल
अपना हाल - ए - दिल उन्हें बतलाए कैसे
तुम्हारे साथ ये मौसम फरिश्ते जैसे है
अब तुम्हारे बाद ये मौसम संग बिताए कैसे
मुश्किलें हमने सवारी है बहुत यूँ तो पर
राह के पत्थर को हम फूल बनाए कैसे
तलाश जारी रखूँ तो कोई मिल जायेगा
अरे मोहब्बत जुर्म नहीं मोहब्बत छुपाए कैसे
ख़ामोश है ज़ुबां , गुम है अल्फ़ाज़
अपने जज़्बात को ग़ज़लों में सजाए कैसे