कुछ कहना है ....
कुछ कहना है ....
ख़ुद से सवाल कर हर रात की तरह उस रात भी बस सोचता रहा
मन ही मन ख्वाब बुनता रहा
बात तो करनी है पर शुरआत कैसे करूं ??
अगला दिन कोई इतिफाक ही था हमारा मिलना
मगर मै कुछ कह ना सका
नज़रे मिली और मानो वक़्त थम सा गया हो
ना जाने ये क्या था ..
जो भी था मेरे लिए बहुत ख़ास था
एक खूबसूरत एहसास था
अब हिम्मत कर बात की .
फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ
हा मोहब्बत हो गई थी मुझे
मगर प्रश्न ये था क्या वो भी मेरी चाहत की दीवानी है ??
क्या वो भी मेरी तरह दुनिया से बेगानी है ?
इन सवालों का जवाब एक ना मिला
रुख सा गया हमारे बातों का सिलसिला
मै एकदम डगमगा सा गया
शायद सच्चे जज्बातों की क़दर नही थी उससे
दिल आखिरी तक माना ही नही
वक़्त बदलता गया मगर मेरे जज्बात ...
खैर छोड़ो एक बात तो साफ़ है
है दिल मै चाह तो क्या नही हो सकता
मगर फिर भी ये नादान दिल उसे भुला नहीं सकता।