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SUHAS GHOKE

Romance

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SUHAS GHOKE

Romance

कहाँ की रीत हुई...

कहाँ की रीत हुई...

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तुम मेरे प्यार को अपनाओ या ठुकराओ

अब ये चर्चा का विषय नहीं प्यार अपनी जगह सही

और दोस्ती अपनी जगह सही 

पर तुम मुझसे एकदम बात भी ना करो

अब बताओ ये कहाँ की रीत हुई।


कविता में उतार दूँ हर बार तुम्हें सलीके से...

वो नादान पर भी पूछते हैं हाल मेरा

अब तुम ही हो देख कर भी अनजान रहती हो

बताओ ना ये कहाँ की रीत हुई।


मेरी हर रचनाओं में तुम्हारा उल्लेख कर

मैं तो लिख दूं तुम्हें सारी उम्र भर पर तुम तो पढ़ती तक नहीं, 

हमेशा मेरे संग ऐसा मधुर होकर बर्ताव कर

बताओ ना ये कहाँ की रीत हुई।


रूप-रूप कर देखा करता हूँ एक झलक के लिए तरसता

और आज फिर चली गई तुम नज़रों के सामने से

मुड़कर भी ना देखा एक बार देख कर भी अनदेखा कर दिया

अब तुम बताओ ना ये कहाँ की रीत हुई।



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