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Arunima Bahadur

Romance

4  

Arunima Bahadur

Romance

मुहब्बत

मुहब्बत

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तिनका तिनका टूट रही थी,

तेरे बिन न जी रही थी,

इन सांसो की क्या बात करते हो,

विरह की तपन में जला रही थी।।


तुम्हें क्या पता, कैसे बिताए ये पल,

न था कलरव, न कुछ कल कल,

तपन थी तो उस दूरी की,

वजह दे गए तुम मजबूरी की।।


क्या जिया हैं तुमने मुहब्बत

हाँ, हमने जिया हैं मुहब्बत,

नैनों के नीर को पिया हैं,

विरह के पर्वत को जिया हैं।।


मन मंदिर के वासी हो,

बस वही रह मुस्काते ही,

नैनों से ही पुकारते हो,

गीत मिलन के गाते हो।।


चाहते हो बस दौड़ी आऊँ,

बस तुम्हारे पुकारने पर,

पर पता तो बता दो,

रहते हो जहाँ पर।।


बस एक रिश्ता हैं तुम्हारा हमारा,

मन से मन के मिलन का,

चाहे स्पर्श न हो तन का,

स्पर्श हुआ है आत्मा का।।


इससे पावन न कोई, और कोई भी नाता है

जब प्रियतम मन मंदिर मर, मंद मंद मुस्काता हैं,

अपने ही कुछ भावों से, वो आलिंगन करता हैं,

मैं हूँ बस उसकी ही, वो मुझमें ही रहता हैं।।



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