कागज़ के पन्नों सी
कागज़ के पन्नों सी
अगर तुम बोलो
तो वो तुम्हारी
बातें सुन लिया करेगी
अपने कागज़ के पन्नों
के बीच में तुम्हारी
कहानियाँ महफूज
रख लिया करेगी।
वो उस कागज़ के
पन्नों की तरह है
जो सिर्फ सुनना जानते है
और तुम्हारी बाते
अपनी जिंदगी की किताब
में महफूज रखना
जानते हैं ।
कहना तो वो तुम्हें भी
चाहती है अपनी कहानी
पर क्या करें तुम हो नहीं
उसकी तरह चुप चाप
बाते सुनने वाले ।
वो उस बंद किताब की
तरह हैं जो कोई पहली
बार में कोई पढ़ना नहीं चाहता
पर अगर एक बार कोई उसे पढ़ ले
तो फिर उसे कोई खोना
नहीं चाहता ।
अगर वो कागज़ के पन्नों
से भरी कहानी की किताब है
तो तुम उसी किताब की कहानी
क्यों कि उसी किताब के हर पन्ने पर
लिखी जाती है सिर्फ तुम्हारी ही कहानी ।
कागज़ के पन्नों से ही
जिंदगी है उसकी भरी
अगर तुम ना बोलो
अपनी कहानी
तो हो जाती है
जिंदगी उसकी अधूरी
क्योंकि उसे नहीं रखनी
अपनी जिंदगी की किताब की
कहानी अधूरी क्यों कि
उसके हर पन्ने पर तुम्हारी
कहानी लिख के ही तो
होती है उसकी किताब की
कहानी पूरी ।