याद
याद
याद तो करती हैं,
पर आवाज़ नहीं देती।
आजकल वो साथी,
मुझे अल्फाज़ नहीं देती।
शायद खफा हैं वो,
मगर क्यों मालूम नहीं है।
शायद उसके लिए अब,
ये प्रकाश मासूम नहीं है।
आखिर क्यों वो चुप है,
मुझ पर क्यों नहीं है यकीन।
वो बख़ूबी जानती है,
मैं कुछ नहीं हूं उसके बिन।
फिर भी चुप रहती है,
मन ही मन करती होगी बात।
मगर उसकी खामोशी से,
बहुत बिगड़ गई है मेरी हालात।
