फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी
फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी


फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी,
करती हो श्रृंगार कौन सा अपनी इन अंखियन में ?
दमकती है जब तुम्हारी ये जागती अंखियां गौरी
रतिया की सोई सोई चंदनिया में,
लगता है मानो सितारों की दमक सारी
अपने नैनन में तुम बसा रही हो।
बोझल हो जाती है ये दिल में बतलाओ
कौनसा बोझ कूली बना इनसे उठवा रही हो ?
विश्राम दिया करो इन्हें भी थोड़ा यूं ही
फ़िजूल हमारी नज़रों से भी मेहनत करा रही हो।
ना कुछ बता रही हो ना कुछ जता रही हो,
करती हो प्रयोग कौन से अपनी इन अँखियन से ?
फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी,
करती हो श्रृंगार कौन सा अपनी इन अंखियन में ?
टिका कर तुम फिर अपने पाव इस खचाखच में,
एकली ना जाने कहां दूजी ओर नज़रे टिका रही हो ?
लाती कहां से हो इतनी मासूमियत भरी चाला
कियां जो
ऐसे मेरा ध्यान अपनी ओर खींच ले जा रही हो।
छाया बिंदु छाए गहरे फिर भी कैसे ये चमचमा रही है,
अरे इस गहरे सागर से बाहर निकालो मुझे
जहां तुम्हारी ये अंखियां खीच के डूबा रही है।
आकर्षित करती है तुम्हारी ये चुंबक सी अंखियां गौरी,
करती हो व्यायाम कौन सा अपनी इन अँखियन से
फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी,
करती हो श्रृंगार कौन सा अपनी इन अंखियन में ?
तुम्हारी इन सोनी सोनी अंखियों में है कमलनयनी
ऐसे कौन से फूलों का कजरा लगा रही हो ?
इत्र से भी ज्यादा जो तुम माहौल महका रही हो,
चकपक भरे माहौल में ख़ामोशी से बैठ कर
तुम मेरे शांत विचारो के गुबार में सुई चुभा रही हो।
फबती है बड़ी तुम्हारी ये बड़ी बड़ी अखियां गौरी,
करती हो श्रृंगार कौन सा अपनी इन अंखियन में।