चलो ले चलो मुझे उसी दौर में।
चलो ले चलो मुझे उसी दौर में।
चलो ले चलो मुझे उसी दौर में,
जहां जादू तो हुआ करता था,
पर जादूगर नहीं।
जहा रेशम तो हुआ करता था,
पर बुनाई नहीं।
जहां आंसू तो हुआ करते थे,
पर रुसवाई नहीं।
जहां तन्हाई तो हुआ करती थी,
पर जुदाई नहीं ।
चलो ले चलो मुझे उसी दौर में,
जहां मौसम बिना बोले रुख नही मोड़ा करते थे,
जहां वो ठंडी पर शीतल हवा,
मुझे यूं छूकर चली जाती थी,
और मां के स्पर्श का एहसास दे जाती थी।
जहां हवाओं में चिड़िया यूं चेचहती थी,
जैसे कानों मे पायालो के सुर छेड़ जाती थी।
चलो ले चलो मुझे उसी दौर में,
जहां धुंद की जगह कोहरा दिखाई देता था,
जहां पेड़ शर्मा के यूं मचल जाते थे,
जैसे दुल्हन की बिदाई का समय याद दिलाते थे।
जहां मौसम रंगीन हुआ करते थे,
जहां गाड़ियों के धुएं नहीं,
पर साईकिल के टायर पर मिटटी हुआ करती थी।
जहां आंसू तो हुआ करते थे,
पर कारण नाराज़गी हुआ करती थी,
नाकी दीवाली पर छूटते पटाखे।
चलो फिर ले चलो मुझे उसी दौर में,
जहां इंसान से ज़्यादा,
जानवर पालना आम हुआ करता था।
जहां नदियों में मछलियां अक्सर दिखाई दे जाती थी,
जहां जंगल भी हुआ करते थे,
और झौपडिया भी।
जहां घोंसले भी हुआ करते थे,
और सांप के बिल भी।
चलो फिर ले चलो मुझे उसी दौर में,
जहां धरती भी कांपने से पहले दो बार सोचा करती थी,
जहा जन्म तो आम हुआ करती थी ,
और मौत अंजान हुआ करती थी।
जहां मै - मै नहीं ,
गुमनाम हुआ करती थी।
चलो ले चलो फिर से मुझे उसी दौर में।