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Kunda Shamkuwar

Abstract

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Kunda Shamkuwar

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नॉट फ़ॉर पब्लिशिंग

नॉट फ़ॉर पब्लिशिंग

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कभी कभी मुझे लगता है कि कुछ भी न लिखूँ....

मैं लिखूँगी नही तो मुझे लगेगा जैसे मैं जिंदा ही नही रही....

जैसे मेरी मौत हो गयी हो....

मुझे लिखना ही होगा....

मुझे दुनिया को बताना होगा कि मैं अभी जिंदा हूँ....


दुनिया मे औरतों के या लड़कियों के न जाने कितने सारे मसाइल है...

ऐसा नही की मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ औरतों पर ही लिखती रही हूँ....

मर्दों पर भी मैं कुछ कविताएँ और कहानियाँ लिखती रही हूँ....

इस दुनिया मे मर्दों के कम मसलें नही होते है....

मर्दों के भी मसाइल होते है...

उनके ईगो....

फ़ॉल्स ईगो वाली उनकी बातें....

हावी होने वाली उनकी प्रवृत्ति....

और उससे हावी होते प्रॉबलम्स....


मैं जानती हुँ की मैंने ढेर सारी कहानियाँ और कविताएँ लिखी है...

कुछ जाने अनजाने विषयों पर....

लेकिन अब मैं सिर्फ़ अपने पसंद के विषयों पर लिखना चाहती हुँ....

बस कुछ ऐसा लिखना चाहती हूँ जो सिर्फ़ मेरे लिए हो....

पब्लिश करने के लिए नही....

मेरे मन की बातें सिर्फ़ मेरे लिए...


अपने मन की बात लिखना क्या आसान होता है?

मन मे न जाने कितने सारे रंग भरे होते है....

लाल,गुलाबी, हरे, पीले, नीले जैसे रंग नही....

बल्कि काले,सलेटी,कत्थई, बादामी और भी इस तरह के कई सारे रंग...

मन की बात लिखते लिखते ये सारे रंग एक लहर बन किसी तरंग की तरह आपस मे मिल गए है.....

और बहते बहते कोई इस कोने से उस कोने में जा रहा है....

इन बहते रंगों को लफ़्ज़ों में बयाँ करना आसान काम तो नही है....

मेरा मन आन्दोलित हो जाता है की मैं लिख नही पा रही हुँ....

मुझे लिखना बंद करना होगा....

शायद दुनिया का सबसे कठिनतम काम है सच्चाई बयाँ करना.........................



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