पूजा के बदले प्रेयर
पूजा के बदले प्रेयर
कभी मुझे ख़याल आता है मैं मंदिर ना जाकर मस्जिद जाऊँ.....
पूजा के बदले नमाज़ पढ़ू.....
या कभी मंदिर ना जाकर चर्च में जाऊँ ..
और पूजा के बदले प्रेयर करुँ.....
मेरे मंदिर ना जाकर मस्जिद जाने से क्या होगा?
क्या भगवान और अल्लाह में लड़ाई होगी?
कि मेरा एक आदमी कम हो गया है?
मेरे गुरूद्वारे ना जाकर चर्च जाने पर क्या होगा?
क्या गॉड और वाहे गुरु में कोई बात होगी?
कि तुमने मेरे एक आदमी को क्यों ले लिया ?
क्या मुझे आशीर्वाद कम मिलेंगे?
या आशीर्वाद मिलेंगे ही नहीं?
क्या उनका डेटा गड़बड़ होगा?
नहीं,उनका कोई डेटा गड़बड़ नहीं होगा
विश्वास !!!
उस विश्वास का क्या होगा?
शायद उनका मेरे पर विश्वास कम होगा
वह मुझे स्वार्थी भी समझना शुरू कर देंगे
हाँ, स्वार्थी!!!
जो जरा सा वक़्त ख़राब होने पर इधर उधर हो लिया .....
लेकिन मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया है
मैंने तो बस पूजा के बदले नमाज़ पढ़ना चाहा है.......
क्या यह इतना जटिल है?
नहीं, हम आदम ज़ात ने इसे जटिल बना दिया है.....
भगवान या अल्लाह को क्या ही फ़र्क़ पड़ेगा?
उनकी कायनात में जो जहाँ चाहे रह सकता है .......
कुछ लोग ही लव जिहाद का नारा बुलंद करते जा रहे है
धर्म परिवर्तन के नाम पर मारकाट मचा रहे है.....
रात में उनके भी आसमाँ में चाँद तारें चमकते है
हर सुबह गुनगुनी धूप उनकी भी खिड़की से झाँकती है .....
हर किसी को दो रोटी और कुछ घंटों की नींद की चाहत होती है
बाकी किसे क्या फ़र्क पड़ता है?
