STORYMIRROR

Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy

4  

Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy

नये पात्र नयी कहानी

नये पात्र नयी कहानी

2 mins
329

बचपन मे मुझे वह सारी कहानियाँ

बेहद रंजक लगती थी

क्या सीता,और क्या द्रौपदी.....

क्या राम, क्या रावण.......

क्या पाण्डव और क्या कौरव.....


न जाने क्यों वह सारे पात्र और

उनकी बातें मेरा मन मोहती थी......

लेकिन बड़ी होने पर मुझे उनका

बर्ताव कभी लॉजिकल नही लगा 

पता नहीं क्यों कहानी बुनते वक़्त

उनका बर्ताव नार्मल नही रखा गया?


कोई स्त्री अपनी बेगुनाही साबित किये

बग़ैर क्या अग्नि कुंड में समा सकती है ?

हाड़ माँस की द्रौपदी को बिना देखे 

कुंती का  पाँच पाण्डवों में बाँट देना क्या नार्मल था ?

द्रौपदी ने क्यों नहीं पाँच पाण्डवों की

पत्नी बनने से इनकार किया ?

पता नही द्रौपदी ने खुद को पाँचों

पाण्डवों में कैसे बाँट दिया होगा ?

द्रौपदी तो स्त्री थी,लेकिन पाण्डव ?

वे तो पुरुष थे न? 

फिर भी उन्होंने ऐतराज़ नहीं किया.....

जिंदगी में हर रोज क्या द्रौपदी

असहज नही रही होगी ?


तो क्या आज के संदर्भ में उन पात्रों को

पुनः लिखने का प्रयास करकेे देखे ?

हाँ, तो फिर आज की राजमाता कुंती

थोड़ी वर्ल्डली वाइज होगी

जो अपना हर फ़ैसला सोच समझ कर लिया करेगी

द्रौपदी की अपनी कोई सोच होगी

जो बड़ों के फैसलों पर मुहर नहीं

बल्कि वह अपने फैसलें खुद करेगी .....

वह बड़ों से सवाल के साथ ऐतराज़ भी करेगी

और जरूरत पड़ने पर उनके हुक्म को

मानने से इनकार भी करेगी.......


आज की पढ़ी-लिखी और द्रौपदी जैसी

कामकाजी महिला क्या अपना चीरहरण होने देगी ?

मुसीबत में वह किसी गोविंद का धावा ना कर खुद ही उनका मुकाबला करेगी...

लेकिन यह सब तो कवी की कल्पनाएँ है

हक़ीक़तन समाज ने अब परम्परा ही नही बल्कि अपने तरीकें भी बदल दिये हैं!!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract