तहज़ीब मुबारक
तहज़ीब मुबारक


चलो आज फिर से
किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के
उसको बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये
मुझसे मत करा करो
शिकायत अपनी महबूब की
ये तो भीतर का आपसी
मसला है अपने ही घर में निपटाया जाये
चलो आज फिर से
किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के
उसको बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये
वो जो कभी अपना सा था
आज किसी और का हो गया
न जाने किस ने चुभोई सुई
मुझ से छिटक कर रस्ता बदल गया
चलो फिर से उसे राह पे लाया जाए
अपनी चाहत अपनी
मोहब्बत का एहसास दिलाया जाए
अब नहीं दर्द है जिसके बिना लिखना भूल गया
खामोश रहा अंदर से
बाहर के शोर औ गुल में डूब गया
आज फिर अंदर के दबे शोर को जगाया जाए
चलो आज फिर से
किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के
उसको बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये
एक ही हकीम था नीम था मगर नामचीन था
पर्चा नहीं थे सरकारी पास उसके
>मगर शिफा में अव्वल हसींन था
झोला छाप कैम्पेन के चलते जो घर बैठ गया
आओ फिर से उसे राह पे लाया जाए
कोई मरकज़ कोई इजलास जमाया जाए
उम्र से कहाँ दाखिल हैं मोहब्बत सलीम तेरी
उन तमाम उम्र पोषा मुमताजों को ये जाके बताया जाए
चलो आज फिर से
किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के
उसको बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये
है तो मंजर बहुत मेरे शहर के मगर सब खामोश है
मेरे शहर के रास्तो से ये ज़ौक़ हटाया जाए
तुमको जो करना था वो तुम कर ही चुके
अब किसी गुस्ताख को उसकी
गुस्ताखी का मज़ा चखाया जाए
अजीब किस्म के नादान हो मौला
तुमको बिना हकीम के शिफा चाहिये
बिना किसी जुर्म , जुर्म की क्यू सजा चाहिए
दर्द लेकर जिगर में निकले हो और
सकून वाला यार चाहिये
आओ सकूं और दर्द का फर्क भी अब
फिर से समझा और समझाया जाये
चलो आज फिर से
किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के
उसको बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये।