मरहम
मरहम


जानती हूँ
की तुम्हे मेरे सहारे की
या मेरे होने की जरूरत
कभी नही थी और न है कभी
मगर मैं कभी तुम्हारे साथ इन वजहों से
थी ही नहीं ना हूँ
और ना कभी होना ही चाहूंगी
मैं तो बस होना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ ऐसे ही
अपने और तुम्हारे लिये
चुनिंदा पलों में।
इसलिए साथ
होना चाहती हूं कि
जब कभी जिंदगी की जद्दोजहद में
तुम सबका ख्याल रखते रखते
अपना ही ख्याल रखना भूल जाओ
तो हो कोई ऐसा
सबकी नजरों में गैर जरूरी
बेमतलब ही आस पास
याद दिलाने को
कि यार कभी अपना भी ख्याल
किया / रखा करो!?
क्योंकि मेरे पास कोई नहीं
हुआ कभी।
एक इसलिए भी
साथ होना चाहती हूं
कभी तुम्हे ये पछतावा न हो
कि उमंग भरे दिनों में
बड़े बड़े और जरूरी से लगते
सपनो के पीछे भागते भागते
तुम जी ही नहीं पाए
नादान सी ख्वाहिशों के हंसीं पल
जो किसी और उम्र में
ढूंढे मिल नहीं पाते
क्योंकि मैंने खो द
िए हैं
वह पहले ही।
और इसलिए भी
कि अपनी काबिलियत और
मेहनत के दम पर
तुम्हारे कामयाब हो जाने पर
जब देखो तुम अपने आस पास
और ख़ुदा न खास्ता
तुम्हे नजर आए अपने
करीबियों के दिलों की जलन
तो दिखाई पड़े तुम्हें
तुम्हारे अपनो से दूर खड़ी
कोई बेगानी दीवानी सी,
तुम्हारी कामयाबी पर
मुस्कराती हुई दिल से
क्योंकि मैंने बटोरी है
अपनों की जलन
अकेले में।
ऐसी कई और भी
जानी अनजानी परिस्थियां आनी है
तुम्हारे जीवन मे अभी
जिनका भूत और भविष्य,
वर्तमान में तुम्हारे साथ चलता हुआ
दिखता रहता है मुझे
फिर उन्ही कसौटियों की राह में
तुम्हे ले जाते हुए धीरे धीरे
क्योंकि जी चुकी
उन्हें ज़रा पहले।
और यह इसलिए
भी नहीं कि तुमसे कोई
खास लगाव या जुड़ाव है मन का
और न यह कोई तुम्हारी किस्मत की बात है
यह सिर्फ मेरे 'मतलब' की बात है
मेरी कराहती स्मृतियों पर
मरहम की बात है।