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Prakash kumar Yadaw

Inspirational Others

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Prakash kumar Yadaw

Inspirational Others

कहानियों में एक साल

कहानियों में एक साल

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कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


बहुत कुछ खोया हूं,

मैं भी अक्सर रोया हूं।

ख़्वाब अब भी है अधूरे,

जिन्हें भूलकर भी सोया हूं।

उनसे भी हो गया दूर,

दिल को जिनसे है प्रीत।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


कभी मन में उल्लास रहा,

कभी दिल मेरा उदास रहा।

कभी खुशी रही साथ में,

तो कभी दर्द ए गम पास रहा।

कभी कभी तो मैं प्रकाश,

कल्पना में ही रहा पुलकित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


ठोकर देने वाले बहुत है,

पर हम क्या शिकायत करे।

बची खुची खुशियों से हम,

भला क्यों व्यर्थ बगावत करे।

गैर तो गैर ही हैं,

अपनों ने ही किया है अहित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


ख़्वाब हम भी सजाते रहे,

भ्रम से खुद को महकाते रहे।

वे जो सिर्फ़ फरेबी थे,

उन्हीं से रिश्ता निभाते रहे।

मिले भी कई हमदम,

मगर थे वे सभी प्रेमरहित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


एक साल में हुआ है,

ज़िंदगी में अनेक परिवर्तन।

सोचा था प्रेम नहीं होगा,

पर बदल गया मेरा भी मन।

कोई आई मेरी ज़िंदगी में,

ख्वाबों का करने लगा जतन।

पर मुझे भी पता नहीं था,

फ़रेब करेगी वो भी मनभावन।

उससे बात करके सोचता था,

इससे भला क्या हर,जीत।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


ज़िंदगी से चाह खो गई,

उसकी कहीं निकाह हो गई।

कई दिन तक रहा दिल उदास,

करता रहा यह भी काश काश।

पर मुझे तो संभलना था,

ग़म से कहीं दूर निकलना था।

और भी तो कई ख़्वाब थे,

ख़्वाब को सच में बदलना था।

ख़ुद को समझा लिया मैं भी,

प्रेम होता है नसीब पर आधारित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


बढ़ चला आगे मैं भी,

स्वप्न को साकार करने।

वो जिसे मंज़िल कहते हैं,

उसका खुद को हकदार करने।

दिल से पूछा क्या है मंज़िल,

दिल बोला उसे नौकरी कहते हैं।

ये वो कारनामा है प्रकाश,

जहां लोग सुकून से रहते हैं।

मुझे भी मिल गई नौकरी,

पर सुकून से तो मैं रहा दूर।

शायद कुछ और करना था,

वही मन में था जिसे लिए फ़ितुर।

मन की बात लिखता गया,

हालातों से मैं सीखता गया।

फिर करवाया मैंने भी,

अपनी पुस्तक प्रकाशित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


उतार चढ़ाव रही ज़िंदगी,

कभी खुशी कभी दुःख के पल।

कभी विरह से भरी काव्य,

कभी उल्लास से भरा ग़ज़ल।

एक साल में सब कुछ हुआ,

स्वप्न को भी करीब से छुआ।

रहा कभी बहुत प्रसन्न मैं,

तो रहा कभी खुशी से वंचित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


जनवरी से शुरू हुई कहानी,

जनवरी में आकर ठहर गई है।

बीते एक साल में ज़िंदगी,

हर परिस्थिति से गुज़र गई है।

जो हुआ उसे स्वीकार किया,

खुद से हमेशा मैंने प्यार किया।

मैं टूटने वालों में से नहीं हूं,

खुद से रूठने वालों में से नहीं हूं।

मैं तन्हाई में रहकर भी,

दिल में सुकून का विस्तार किया।

ज़िंदगी नहीं है बोझ,

हर पल खुद की है खोज।

ज़िंदगी बहुत अमूल्य है प्रकाश,

इसे रखो तुम भी सुरक्षित।

कहानियों में एक साल,

कैसे हुआ है व्यतीत।

सुनाता हूं तुम्हें मैं,

ऐ मेरे मन के मीत।


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