मेरा वजूद
मेरा वजूद
तुम---- एक क्षितिज जैसे,
फैले हो दूर-दूर तक----
मेरे हृदय-व्योम पर,
और
मेरा अपनापन तुमसे----
जैसे-----
सांझ की रुपहली
किरण---
खोजते खोजते, मुझे---
समा गए हो---
जैसे---
सांझ की इन
रुपहली किरणों के---
मोहपाश में,
बंघ गये हो---
यकायक----
कितना ही दूर जाना चाहो----
बच ना सकोगे--- कभी,
मेरे प्रेम के बंधन से,
खिंचते ही जाओगे---
फिर वापिस,
मेरी स्नेहिल डोर से,
तुम अंबर जैसे----- और
धरती हूँ मैं
बिन तुम्हारे----
निराधार है----
वजूद मेरा......

