तुम ही माझी, तुम ही पतवार
तुम ही माझी, तुम ही पतवार
हे कृष्णा, हे प्रीतम, तूने सुन ली मेरी पुकार l
तू ही मेरा जीवन,तू ही मेरा जीवन आधार।
मैं हूँ कस्ती, जो पड़ी थी बीच मझधार l
हे कृष्णा, तूने माझी बनकर मेरी कस्ती लगाई पार।
फिर दुखी हूँ,व्यथित हूँ, सुन्दर ले मेरी पुकार l
हे कृष्णा,करो कृपा मुझपर हे करुणावतार।
बेबस नहीं हूँ, लाचार नहीं हूँ, ना हूँ कमजोर l
बस एक तेरी अदद प्रेम दृष्टि की मुझे दरकार।
सोचती हूँ क्या हूँ मैं,जानती हूँ कुछ भी तो नहीं l
तेरा कृपा जो मिल जाये मुझे, हो जाऊ मैं मालामाल।
हे कृष्णा, बजाओ तुम फिर प्रेम मुरलिया l
हर लो नाथ, मेरा तुम जीवन संताप।
इत देखु, उत देखु, देखु मैं चहुँ ओर l
हे कृष्णा, तेरी दया का नहीं देखु कहीं ओर -छोर।
तेरी प्रीत समाई, मेरे कण -कण में l
हे कृष्णा, फिर क्यूँ मैं तुझे ढूँढू मधुबन में।
तुझसे है हर गीत, तुझसे मेरे जीवन में संगीत l
तुम ही मेरी प्रीत कृष्णा, तुम ही हो मनमित।
तुमसे ही सुबह मेरी, तुम्ही पे मेरी शाम है l
जिस पल तेरा नाम ना लूँ, उस पल को धिक्कार है।
हे कृष्णा, अंधा क्या चाहे, दो आँखे l
तुमने मुझे अपनाया, ये तेरा उपकार है।