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karan ahirwar

Abstract

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karan ahirwar

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मैं सहर हूं

मैं सहर हूं

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बारिशों की रातों में चांद को ढूंढता हूं

मैं सहर हूं , शाम को ढूंढता हूं


किसी रोज़ नींद मिले तो कह देना उससे

में उसे अपनी हर रात को ढूंढता हूं


अब हर वक्त माथे पर शिकन रहती है

गुमशुदा फुरसत की बारात को ढूंढता हूं


बचपन का दौर था मजा आया

जवानी में खोया इतमिनान को ढूंढता हूं


धोखे से भरी इस दुनिया में भरोसा बने

ऐसे एक बेमतलबी साथ को ढूंढता हूं।



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