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Akaash ydv Dev

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4.1  

Akaash ydv Dev

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ज़िन्दगी... अब भी सफर में है!!!

ज़िन्दगी... अब भी सफर में है!!!

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तू लाख मुझ से दूर सही

पर मेरी नज़र में है

बेशक मेरी ज़िंदगी की कश्ती

आज भँवर में है


बहारें कब की बीत गईं

चरागें भी हैं बुझी हुई

अंधेरा ही है हर तरफ

अब पत्ते भी कहाँ इस शज़र में हैं


तमन्नाओं की फेहरिस्त में 

अब ख्वाब भी तो कोई शामिल नही 

बदले हैं हम बस इतना ही की

अव बदलाव भी हमारे असर में है


मुफ़लिसी ने हमसे यूँ नाता है जोड़ा

रिश्तों की झोली भी खाली पड़ी है

भाई भी मेरा ये भुला है कबसे-

 "एक भाई भी मेरा इस घर मे है"


तन्हाई के इस आलम में 

बस मैं ही खुद हूँ मेरा 

तेरी यादों कर हर कतरा

मेरे खूं-ए-जिगर में है


रंजिश की बातें कुछ वैसी नही है

मिलता हूँ सबसे अब भी मुस्कुरा कर

बस कबूल नही उसको मेरा मुस्कुराना

एक रक़ीब ऐसा भी इस शहर में है


दीमकें कब की चाट गई

ना जाने किसकी बद्दुआ थी ये

मैं अपने 'घर' पहुंच गया

बस ये जिस्म ही बाकी अब सफर में है.


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