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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

प्रेम पत्र

प्रेम पत्र

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सुनो, मेरी जान ए जाना ए दिलकशी, जाने तमन्ना 

जान ए बहार, जाने गजल 

हंसीं दिलरुबा, दिले तराना 


मेरे ख्वाबों में रोज क्यों आती हो 

इतना बेचैन क्यों कर जाती हो 

जबसे देखा है तुम्हें, मदहोश हैं

अदाओं से दीवाना क्यों बनाती हो


मलमल से अहसासों के ताने बाने में

भावनाओं के धागे क्यों पिरो जाती हो 

रेशमी मुस्कान के जाल में फंसाकर

बातों बातों में दिल चुरा के ले जाती हो 


तुम्हारी सांसों की गर्मी से 

आसमां भी पिघलने लगा है

सागर में उठने लगे हैं तूफां 

हिमालय भी अब डिगने लगा है


जो पिलाई है तुमने आंखों से 

उसका नशा उतरता ही नहीं है

तुझे देखने के बाद इन आंखों को 

अब और कुछ जंचता ही नहीं है


इन गेसुओं को खुला मत छोड़ा करो 

ये काले काले नाग किसी को डस लेंगे 

ऐसी प्यारी निगाहों से गर छूओगी हमें

तो किसी दिन अपनी बांहों में कस लेंगे 


प्रेम का एक ऐसा दरिया हो तुम 

जिसमें डूब जाने को जी चाहता है 

तुम्हारी मोहब्बत का आंचल ओढ़कर

नींद में सो जाने को दिल चाहता है 


मैं अगर शायर होता तो गजल लिखता

तुम्हारे गुलाब की पंखुड़ियों से अधरों पे 

जहां पानी की एक बूंद ठहरने को तरसे

और जिनसे अमृत कलश बेतहाशा छलके 


जैसा तीखा रूप वैसी तीखी नाक भी 

जिस पे नखरे हमेशा विराजमान रहते हैं 

चंचल पवन की तरह ये दो नयन तुम्हारे

आंखों से उतर कर सीने में विद्यमान रहते हैं 


न जाने कब इन संगमरमरी बांहों का हार मिलेगा 

तपती रेत सी बेकरारी को कब करार मिलेगा 

और कितनी तपस्या करनी होगी ये बता जा 

इस बेचैन "हरि" को कब तेरा प्यार मिलेगा 



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