स्वर्णिम भारत
स्वर्णिम भारत
जिसने देश को स्वर्णिम
बनाने की कसम खायी थी !
संविधान के ग्रंथों में हाथ
रखके सपथ खायी थी।
"सबका साथ सबका विकास "
के नारे कानों में गूँजा करते थे !
"मेक इन इंडिया "और "आत्मनिर्भता"
के मंत्रों के धुनि रमाया करते थे।
चले थे सात समंदर पार देशों
से अपना कोई जुगाड़ लगायें !
क्या बात हो गयी अपने पड़ोसिओं से
जो आपके कोई काम ना आयें।
कोई पूछता हो आखिर महंगाई
बताओ कहाँ जा रही है ?
विश्व के कोने -कोने में देखो
यह विकराल महामारी फैल रही है।
आपके वादे ने हमें बहुत ही
एक -एक करके निराश किया !
देश की संपदाओं को चुन -चुन
फिरंगियों की तरह बेच दिया।
लोगों की नौकरियाँ चलीं गईं
युवाओं को काम कहाँ से देंगे ?
करेंगे जनमानस की अनदेखी
स्वर्णिम इतिहास कैसे रचेंगे ?