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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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और सुलह हो गई "

और सुलह हो गई "

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चार छः दिन

ननिहाल रह कर 

पोता घर लौटा।

धड़धड़ाते हुए सीधे दादा से 

मिलने पहुँचा। 

दादा! ओ दादा !


 मैं आ गया

 कहते हुए    

कमरे की तरफ दौड़ा

एक दोस्त जैसे बिछुड़े   

 दोस्त से मिलने दौड़ा।

दादा कमरे में चुप लेटे थे

उदासियां दिल में समेटे थे।


पोते की पदचाप सुन

दादा के तन में हरकत हुई।

पोते से मिलकर

दादा के मन को खुशी हुई 

दादा की बाहें फैलीं  

पोता बाहों में समा गया  


दादा तो जैसे कोई

खोया खजाना पा गया    

बहू बेटे से कहासुनी

के बाद

दादाजी अनशन पर थे

कमरे से बाहर न आते थे। 


पोते से मिलकर

दादा सब भूल गए 

पोते का हाथ थाम 

कमरे से बाहर आ गए। 

संग संग मस्ती करने लगे  

हंसने खिलखिलाने लगे।


घर में जमा मायूसी

पल में काफूर हो गई। 

दादा की जैसे फिर  

एक नई सुबह हो गई। 


घर का माहौल बदल गया 

निर्मल आनंद प्रसर गया।

मौका देख बहू चाय ले आई

बेटे ने पापा को चाय थमाई।

 

चाय पीने लगे 

सभी बतियाने लगे।

कड़वाहट चाय में  

चीनी सी घुल गई 

पोता सेतु बना

फिर एक बार

सुलह हो गई।


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