STORYMIRROR

Rishi Rai

Inspirational Others

4  

Rishi Rai

Inspirational Others

घुमक्कड़ मन

घुमक्कड़ मन

1 min
638

घुमक्कड़ मन, कहाँ ठैर पाएगा,

कभी समन्दर को शांत देखा है?

इस पार कभी तो कभी उस पार,

हमने उसे हमेशा सैर लगाते देखा है।


सरपट दौड़ जाता है

विचारों के अश्व पर सवार हो,

बेचैन कभी, कभी निराश,

मुग्ध कभी, कभी उल्लास,

न जाने कैसे इतना समेट लेता है।


सोचा कभी हाथ पकड़कर रोक लें,

हाथ झटक कर, पाँव पटक कर, बैठा रहा,

आँख मूंद कर, पेट पकड़कर, हँसता रहा,

मुँह फुलाकर, नाक चढ़ाकर, देखता रहा।


कुछ देर शांत बैठकर,

हृदय एकांत देखकर,

फिर उठेगा, दौड़ जाएगा,

घुमक्कड़ मन, कहाँ ठैर पाएगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational