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कहाँ रह गई

कहाँ रह गई

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बच्चों को बंधाकर हौंसला

ढ़क के तिनकों से घौंसला,

उड़ने चली है चिड़िया रानी

ढ़ूँढ़ने के लिए दाना-पानी, 


बोली आऊँगी मैं लौट के

तब तक तुम रहना ओट में,

तुम्हारे लिए लाऊँगी खाना

दबाकर के मैं चोंच में दाना,


सूरज का था तीव्र प्रकाश

नापा इधर-उधर आकाश,

न मिला कहीं दाना-पानी

आँखों में था उसके पानी,


सोचे बच्चों से क्या कहूँगी

कैसे उनकी मैं भूख सहूँगी ?

सोच यह उड़ती वह आती

मुड़ कर जब घर वह जाती,


रस्ते में था खड़ा शिकारी

बन्दूक से चिड़िया दे मारी,

तड़प-तड़प लगी वो मरने

अंतिम इच्छा लगी वो करने,


बच्चे भी कर रहे इन्तजार

कहाँ रह गई माँ इस बार ?

भूख से मूर्छित से हो गए

रोते-रोते ही बेचारे सो गए,


मरते-मरते कि उसने दुआ

हे प्रभु ! जो हुआ सो हुआ,

मेरे बच्चों का ख्याल रखना

शिकारी को भी माफ करना।


सही-गलत, कब होगी पहचान

कब बदलेगा आखिर इंसान ?

है वो जानवरों से भी बदत्तर

होते जानवर फिर भी बेहतर।


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