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Rashmi Singhal

Abstract

4  

Rashmi Singhal

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लालटेन

लालटेन

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आज की चकाचौंध से जब 

आँखें कभी चौंधियाती हैं,

बीते युग की तब-तब वो

लालटेन याद आती है,


वो शाम आते ही अम्बर में

सूरज का ढ़ल जाना,

वो गोधुली पर आँगन में 

लालटेन का जल जाना,


लालटेन की लौ में पढ़कर

नाम कईं हुए उज्जवल

आज की चकाचौंध में भी

हो पाते न उतने सफल,


सुरज ढ़लते ही पशु-पक्षी 

लौट के वापस आते थे

बच्चे-बड़े-बूढ़े भी सब

दिन ढले घर आ जाते थे,


हर घर कि दिवार से ये

सटी रहा करती थी

कहीं आलों में कहीं खूँटी 

पर टँगी रहा करती थी,


जलती काँच की सदा ओट 

में, थे वार न इसके तीखे

कहावत है"अँधेरे का सम्मान

कोई लालटेन से सीखे,"


हर क्षेत्र में लालटेन ने 

कितने ही,इतिहास रचे

कितनी ही इसने बाँटी रोशनी

कितने ही इससे अँधेरे बचे,


लालटेन का अस्तित्व खो

चुका,बीते युग के तैखाने में

क्या समझेगी आज की 

पीढ़ी इसे इस जमाने में,


जो नहीं है लालटेन फिर भी 

हम अँधकार मिटा सकते हैं

आशाओं की लौ से हम मन 

की लालटेन जला सकते हैं,


मन में की लालटेन ही हमारे

भीतर से तम मिटा सकती है

चकाचौंध से भरी दुनिया में

बेहतर राह दिखा सकती है।   


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