प्रेम
प्रेम
प्रेम में याद रखने लायक सबसे जरूरी बात ये जानना है कि
आपको अपने साथी के साथ कहाँ तक साथ चलना है,
कहाँ से उसका हाथ छोड़ कर उसको आगे बढ़ते देखना है,
और कहाँ सबसे मजबूती से उसका हाथ थामना है।
प्रेम सिर्फ साथ चलते रहने का नाम नही है,
प्रेम सही समय पर साथ छोड़ देने का भी नाम है।
प्रेम में आप अपने साथी को एक छोटे बच्चे को पुनःचलते और दौड़ते देखते है
और वो बच्चा बिल्कुल 'ये जवानी है दीवानी'
का बनी की तरह होता है जो चलना चाहता है,
दौड़ना चाहता है बस रुकना नही चाहता।
परन्तु अनियमित वेग से आ रही किसी चलायमान वस्तु में
जब अचानक ब्रेक लगता है तो वो विध्वंश के क़रीब पहुंच जाती है।
इसलिए वेग में एक स्थिरता जरूरी है मंजिल तक पहुंचने के लिए।
उसमे जितना जरूरी किसी का हाथ थामना है
उतना ही जरूरी सही समय पर हाथ छोड़ देना भी है।
प्रेम में होने पर मन तो बहुत करता है
अपने प्रेमी का सर दिन-रात अपनी गोद मे रखने का,
उससे यथार्थ को नज़रअंदाज़ करते हुए भविष्य की कल्पनाएं बुनने का।
पर यही वो भी समय होता है जब आपके
भीतर बदलाव बहुत जल्दी से हो रहे होते है।
सारी दुनिया पैरों पर नही सर पर उठाने का साहस गोते लगाने लगता है।
प्रेम हमे सृजन का साहस देता है और सृजन रोक भी देता है
अगर आपने अनियमित वेग को स्थिरता प्रदान नही की तो।
साथ देने और छोड़ने की समझ प्रेम में हुए आपके परिष्करण पर निर्भर करती है,
किसी को इसकी समझ पहले प्रेम की अनुभूति में आ जाती है
तो किसी को अंत तक समझ नही आता।
यहां छोड़ देना दोनों अर्थो में निहित है पूर्ण तऱीके से किसी का साथ छोड़ देने में
और कुछ समय के लिए अपने साथी को अलग कर के उसको दूर से देखने मे।
ठीक उसी तरह जैसे सुबह की सैर करते हुए
हम दोनों एक दूसरे को अकेले छोड़ देते थे कुछ समय के लिए,
तब हम दोनों ही बच्चे की तरह चलना चाहते थे,
दौड़ना चाहते थे और कभी-कभी रुकना भी चाहते थे मगर...हारना नहीं चाहते थे:::::

