STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

4  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

अपनी मर्जी

अपनी मर्जी

1 min
619

फैसला उम्र भर का है,

जिंदगी का फलसफा है ,

कोई गिला शिकवा नहीं है,

बंदगी का नहीं कोई रुतबा है।


बस यूं ही आंखो् की ललक,

दिल में चाहतों की धड़क,

 न कोई हमसफर न रास्ता,

दूर दूर सा रहने की लगन।


उल्फतों के साये में वीरान,

जिंदगी की खुली दास्तान,

एक राही जिद भरी हुंकार,

ममंजिल ए रास्ता सुनसान।


न आगे न पीछे कोई सरीखे,

जिंदगी के उसूल अपने तरीके,

हर कोई जीता है अपना मुकाम,

हर लकीर लिखा है भाग्य अंजाम।


जीने दो अपना अंदाज ए जिंदगी,

अपनी मर्जी न दो मुकाम ए बंदगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy