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Ravi Ghayal

Abstract Tragedy

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Ravi Ghayal

Abstract Tragedy

लाश लिए फिरता हूं

लाश लिए फिरता हूं

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मैं

अपनों से दूर......

बहुत दूर

निकल आया हूँ।


जो अपने .......

अपने हो कर भी .......

अपने ना हों।


उन अपनों में

अपना-पन

कैसे ढूँढूँ।


अब तो यूं लगता है

मैं से भी....

मेरा नाता

टूट सा गया है 

मैं खुद भी

अपना नहीं रह गया हूँ।


मुझ में से कोई....

मुझको

निकाल ले गया है

केवल लाश

लिए फिरता हूँ।


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