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Dr. Madhukar Rao Larokar

Abstract

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Dr. Madhukar Rao Larokar

Abstract

,""पतंग की डोर ""

,""पतंग की डोर ""

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जिंदगी में, मेरी तुम

आ मिलो, कुछ इस तरह ।

धागे की डोर में, पतंग बंध

उड़ती जाती हो, जिस तरह ।।

मेरी आशा, उम्मीद को

ऊंचाई देती जाओ इस तरह ।

मांझे में, कांच का हो मिश्रण

और खून की लालिमा

हो जिस तरह

पर साथ रहो, मेरी डोर के

मनमंदिर में, भगवान के

उठे हाथ की तरह ।।

ना खो,जाना कहीं

बादलों की ओट में ।

मैं ढ़ील देता जाऊं और

तुम तनकर उड़ो मेरी

आशा के आकाश में ।।

चाहे जितनी, ऊंची उड़ो

पर ओझल, ना होने देना

धरती के आंचल को।

गगन से धरा पर, इंसा दिखते बौने

पतंग व डोर का होता, अटूट संबंध

'मधुर 'याद रहे, यह सभी को ।।



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