दरिया-ए-ज़िन्दगी
दरिया-ए-ज़िन्दगी
ज़िन्दगी दरिया-सी आगे बहती जाए,
दिनों-दिन बेरोक आगे बढ़ती ही जाए,
फिर पीछे लौट के कभी चलके न जाए,
ज़िन्दगी कोई भी पल फिर न दोहराए।
हर एक नायब खुशी आती-जाती जाए,
हर एक ग़म भी आता-जाता चला जाए,
मुश्किलों जैसे पत्थरों से टकराता जाए,
नए नहरों जैसे दोस्तों से मिलता जाए।
कुछ ज़िन्दगियों में हरियाली देता जाए,
जगह-जगह रिश्ते नाते बनाता जाता जाए,
फिर उन्हीं रिश्ते नातों से बिछड़ता जाए,
अनेक हालातों से गुज़रता ही चला जाए।
नए-नए तजुर्बों को अपने में समाता जाए,
आख़िर में गहरे समंदर में शामिल हो जाए,
सच यही है कि ज़िन्दगी एक ही बार आए,
इसलिए हमेशा दिल को दरिया बनाया जाए।
कैफ़ियत यही है कि दरिया
की तरह किसी के काम आए|